आलोचना >> कविता का गल्प कविता का गल्पअशोक वाजपेयी
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कविता और कवियों पर उनका यह नया निबंध-संग्रह ताजगी और उल्लाह भरा दस्तावेज है
पिछले तीस बरसों की हिंदी कविता की रचना, आलोचना, संपादन और आयोजन में अशोक वाजपेयी एक अग्रणी नाम रहे हैं। हिंदी समाज में आज की कविता के लिए जगह बाने की उनकी अथक कोशिश इतने स्तरों पर और इतनी निर्भीकता और आत्मविश्वास के साथ चलती रही है कि उसे समझे बिना आज की कविता, उसकी हालत और फलितार्थ को समझना असंभव है। अशोक वाजपेयी निरे आलोचक नहीं, अज्ञेय, मुक्तिबोध, विजयदेव नारायण साही, कुंवर नारायण, मलयज आदि की परंपरा में कवी-आलोचक हैं। उनमें तरल सहानुभूति और तादात्म्य की क्षमता है तो सख्त बौद्धिकता और न्यायबुद्धि का साहस भी। आधुनिक आलोचना में अपनी अलग भाषा की स्थायी छाप छोड़नेवाले वे ऐसे आलोचक हैं जिन्होंने अज्ञेय, मुक्तिबोध और शमशेर से लेकर रघुवीर सहाय, धूमिल, श्रीकांत वर्मा, कमलेश, विनोदकुमार शुक्ल आदि के लिए अलग-अलग तर्क और औचित्य खोजे परिभाषित किये हैं। कविता की उनकी अदम्य पक्षधरता निरी जिद या एक कवि की आत्मरति नहीं है-वे प्रखरता से, तर्क और विचारोत्तेजन से, जिम्मेदारी और वयस्कता से हमारे समय में कविता की जगह को सुरक्षित और रौशन बनाने की खरी चेष्टा करते हैं। अज्ञेय की महिमा, तार सप्तक के अर्थ, रघुवीर सहाय के स्वदेश, शमशेर के शब्दों के बीच नीरवता आदि की पहचान जिस तरह से अशोक वाजपेयी करवाते हैं शायद ही कोई और कराता हो। उनमे से हरेक को उसके अनूठेपन में पहचानना और फिर एक व्यापक सन्दर्भ में उसे लोकेट करने का काम वे अपनी पैनी और पुस्तक-पकी नजर से करते हैं। कविता और कवियों पर उनका यह नया निबंध-संग्रह ताजगी और उल्लाह भरा दस्तावेज है और उसमे गंभीर विचार और विश्लेषण के अलावा उनका हाल का, हिंदी आलोचना के लिए सर्वथा अनूठा, कविता के इर्द-गिर्द ललित चिंतन भी शामिल है।
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